Friday, September 25, 2015

जहिं आकोसण वयण सहिज्जइ, जहिं पर-दोसु ण जणि भासिज्जइ।
जहिं चेयण गुण चित्त धरिज्जइ, तहिं उत्तम खम जिणे कहिज्जइ।।
----कविवर रइधू

ओ मेरे प्रिय!
आपके नेह से
मुझ में ऐसी शक्ति का संचार हो कि-
मुझमें दूसरों के क्रोधपूर्ण वचनों को
सहजता से सहने की शक्ति आ जाय
और.....
दूसरों में दष दिखना तो दूर की बात
नका आभास होना भी
बंद हो जाय
बात इतनी ही नहीं......
मेरे भीतर निरंतर स्वयं
अपनी आत्मा के गुणों को
थिरता के साथ ध्याने की शक्ति आ जाय
जिनेन्द्र भगवान कहते हैं कि जब ऐसा होता है
तब उत्तम क्षमा प्रकट होती है
कामना है कि
आपके भीतर ऐसी उत्तम क्षमा प्रकट हो
और.....
आपके आशीष से मेरे भीतर भी....


·         वृषभ प्रसाद जैन